रक्षाबंधन
भाई देता है बहन को रक्षा का वचन,
इसी प्यार, विश्वास का रूप है रक्षाबंधन।
रक्षाबंधन एक पवित्र भावना को पोषित करता, भारतीय संस्कृति को दर्शाता, उमंग भरा
त्यौहार है। जिसे संपूर्ण उत्साह और उल्लास से प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया
जाता है।
इस त्यौहार का प्रारंभ द्वापर युग से माना जाता है, जब कृष्ण की ऊँगली से बहते रक्त
को रोकने के लिए द्रौपदी अपनी साड़ी से एक किनारा फाड़कर बाँधती है और कृष्ण उनकी
रक्षा का वचन कौरव सभा में चीर बढ़ाकर पूरा करते हैं।
इंद्राणी ने भी इंद्र को दानवों से युद्ध पर जाने से पहले रक्षा-सूत्र बाँधकर उनकी विजय
की कामना की थी।
मुगल काल में जब मेवाड़ की रानी कर्मवती पर बहादुर शाह ने आक्रण किया, तब अपने
राज्य की रक्षा हेतु रानी ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपना भाई बनाया था। हुमायूँ ने भी अपनी
हिन्दू बहन की पराजय का बदला बहादुर शाह को हराकर लिया था।
1905 में बंगाल के विभाजन के समय आपसी सौहार्द बढ़ाने के लिए नोबेल पुरस्कार
विजेता गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने हिन्दू, मुस्लिम महिलाओं से दूसरे धर्म के पुरूषों को
राखियाँ बँधवाकर ये परम्परा शुरू की थी।
ये सभी उदाहरण बताते हैं कि यह त्यौहार सिर्फ कुछ धागों का बंधन नहीं है अपितु उस
गरिमा और गहन भावना का प्रतीक है जो जीवन की जटिलताओं और कठिनाईयों में मानव को
आशा और सुरक्षा का संबल प्रदान करती है।
कभी द्रौपदी का संबल, तो कभी इद्र की जयमाला है।
एक नहीं कई रिश्तों का, रक्षाबंधन रखवाला है।
माँ, बहन ओर सखा रूप में, प्रेम सरस का प्याला है।